जमीनी स्तर से जुड़े होने के कारण हमने खुद ऐसा महसूस किया है कि कामदार वर्ग अपने जीवन में सबसे ज्यादा संघर्ष का सामना करता है।
एक कामदार की दिनचर्या परिश्रम से शुरु होती है और थकान पर खत्म होती है । एक कामदार, परिश्रम को ही अपनी अंतरात्मा से अपना सच्चा साथी स्वीकार कर लेता है। दबे और अनचाहे मन से ही सही। ""एकमात्र परिश्रम"" ही एक कामदार के सुख, चैन और शान्ति को परिभाषित करती हुई दिखाई पड़ती है।
हर एक कामदार अपनी मेहनत और ईमानदारी से अपना पसीना बहाकर अपने परिवार का पालन पोषण करना चाहता है। और ऐसी अभिलाषा होना स्वाभाविक है। लेकिन जिस तरह प्रकृति भी वर्षभर में कई बार अपने मौसम बदल देती हैं।
इसी तरह हर एक कामदार के जीवन में भी परिस्थितिया सदैव समान नही रह सकती। और ऐसा होना एक प्राकृतिक सत्य है। परिस्थितियों का बदलना और अचानक विपत्तियों का आना किसी भी इनसान के विश्वास को डगमगा सकता है। कामदार वर्ग के जीवन में भी परिस्थितियों के बदलने और विपत्तियों के आने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है जिसके कारण एक कामदार अपने जीवन में सदैव खुद को असहज महसूस करता हुआ दिखाई पड़ता है।
एक कामदार के संघर्ष करने की प्रक्रिया प्राचीन काल से आज तक निरंतर जारी है।
एक कामदार के निरंतर प्रयास, अथक परिश्रम, और संघर्ष को बहुत ही करीब से देखने के बाद हमने एक ऐसा संगठन बनाने की जरूरत महसूस की कि जहां तक अपना दायरा हो उस दायरे में रहने वाले कामदारो के संघर्ष को साझा किया जा सके और कामदारो के सुख दुःख में सहयोग करते हुए पूरकता के तहत अपनी अपनी सहभागिता सुनिश्चित की जा सके।